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काली पहाड़ी

230.00

काली पहाड़ी

230.00

लेखक : ममंग दई

अनुवादक : कंचन वर्मा

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Description

यह कृति। ममंग दई अपने इस उपन्यास के बारे में कहती हैं मेरे सामने किताबें हैं। ये मुझे इस जगह और साथ ही एक पादरी के बारे में बताती हैं जो इन पहाड़ियों में अपने क्रास और सेक्सटेंट के साथ कभी आया था। समय के साथ पीले पड़े इन कागजों में जज्ब है उस पादरी की सोच और उसके अनुभवों की दास्तान। साथ ही है गुज़रे हुए वक़्त की एक अनलिखी कहानी, जो उन पर्वतीय दीवारों के पीछे कहीं छिपी हुई है। इसी कहानी को ढूँढ़ निकालने के लिए मैंने कई दिनों की कठिन यात्राएँ कीं और एक दिन में एक काली पहाड़ी पर पहुँची। उदासी और मायूसी से भरपूर, दूर-दूर तक उजाड़ पड़ी इस जगह में मेरी निगाहों ने अचानक एक आधी जली खाली झोपड़ी तलाश ली, जिसके टूटे-फूटे मचानों से सूरज की किरणें उस झोपड़ी में सुनहरे वाणों की तरह बरस रही थीं। घर में कोई दिखाई नहीं दिया लेकिन मैंने वहाँ किसी के होने को महसूस किया। ऐसा लगा जैसे किसी ने वहाँ आकर एक मोमबत्ती जलाई हो। एक बंद किताब खुल रही थी। कोई मुझसे विगत दिनों की बातें कह रहा था और उसके शब्द दिन की तरह साफ-शफ्फाफ थे! प्रत्येक शब्द स्पष्ट सुनाई दे रहे थे एक आदमी, एक औरत और एक पादरी। हाँ, विलकुल यही। यह कहानी इन्हीं की है…।

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