बीसवीं सदी की हिंदी कथा-यात्रा (खंड 3)
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चयन एवं संपादन : कमलेश्वर
सहायक : गायत्री कमलेश्वर
Description
इन कहानियों मंे सामान्य जन के अकेलेपन का संत्रास मृत्यु-भय या किसी सर्वशक्तिमान के अभिशाप का फल नहीं, समसामयिक विघटनवादी परिस्थितियों की देन है, जिनमें ऊबता का घबराता हुआ मनुष्य मौजूद है।
समकालीन कहानी का मुख्य पात्र निम्न-मध्यवर्गीय मनुष्य ही है, जो अपने परिवेश से संपृक्त और सामाजिक जड़ों द्वारा अपने अस्तित्व की खुराक पा रहा है। वह प्रवृत्तिमूलक या अहंमूलक व्यक्ति नहीं- जीवन के घात-प्रतिघातों को सहता, हारता-हराता, क्षुद्रता और मनुष्यता को सहेजता-नकारता, अपनी निर्णय-शक्ति को बचाता-लुटाता, इसी दुनिया और इसी जीवन के अस्तित्व में विश्वास करता, सुख-दुख उठाता, जाने-अनजाने नए क्षितिजों को उद्घाटित करता और नए संबंधों-संतुलनों को जन्म देता ज़िंदगी को वहन कर रहा है। इस खंड की कहानियाँ जीवन की समग्रता को रूपायित और प्रस्तुत कर सकेंगी, ऐसी आशा है।
बहुसम्मानित एवं समादृत कमलेश्वर हिंदी के प्रख्यात लेखक थे।