मोरों वाला बाग़
₹50.00
लेखिका : अनीता देसाई
अनुवादक : विमला मोहन
Description
सौभाग्य से जूनी का परिवार भटकते-भटकते ऐसे गाँव में जा पहुँचा जहाँ के लोग बड़े ही भले थे। इस गाँव के पास मोरों का बड़ा ही खूबसूरत बाग था। इन मोरों के साथ जूनी और दूसरी लड़कियाँ तितलियाँ बनकर खेलती रहीं। धीरे-धीरे हालात सुधरने लगे और जूनी को भी अपने परिवार के साथ अपने गाँव लौटना पड़ा। तब उसे लगा कि वह जिन मोरों के साथ इतने दिनों तक जिस गाँव में रही-वह भी उसे कभी पराया नहीं लगा। और उसका दिल मोरों वाला बाग़ कभी नहीं भुला पाया।