त्रिलोचन रचना – संयचन
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लेखक : त्रिलोचन
चयन एवं संपादक : गोबिंद प्रसाद
Description
त्रिलोचन रचना-संचयन : तुलसी और निराला की राह पर चलने वाले त्रिलोचन की कविता सांस्कृतिक जड़ता को तोड़ती हुई जीवन-संघर्ष के बुनियादी मूल्यों से गहरा सरोकार रखती है। लोक-जीवन के प्रति आत्मीय लगाव और हिंदी भाषा की जातीय संघर्षशील चेतना की जड़ों को जिस आधुनिक संवेदना और रचनात्मक संयम के साथ सींचा है, वह त्रिलोचन जैसे साधक का ही काम है।
त्रिलोचन के रचना-संसार में काव्य-रूपों की कमी नहीं-गीत, ग़ज़ल, रुबाई, बरवै, छोटी और लंबी कविताओं के साथ-साथ सॉनेट भी शामिल हैं। सॉनेट और त्रिलोचन तो हिंदी में पर्याय बन चुके हैं। कवि त्रिलोचन दुख में अपने को ‘रिड्यूस’ नहीं करते। अपराजेय रहकर निरंतर उदात्तता की ओर ले जाते हैं। इस अर्थ में उनका काव्य-व्यक्तित्व व्यापकता के साथ-साथ ऊर्ध्वगामी भी है। इसीलिए उन्हें ‘हिंदी के महाप्राण कवियों की परंपरा में उन्नत प्राण कवि’ कहा गया है। ऐसे विलक्षण कवि की रचनाओं का यह संचयन पाठकों को पसंद आएगा, ऐसा विश्वास है।